मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
हमारी प्रकृति
क्या बच्चे मूर्ख हैं,बेवकूफ़ हैं,फालतू प्राणी हैं,घर की,परिवार की?
क्या ये दोषारोपन के निमित्त हैँ?
हम सबका उत्तर होगा 'नहीं'।
फिर हम उनको मूर्ख क्यों बतलाते फिरते हैं?
क्या सिर्फ इसलिए कि वे दुनिया के दाँव-पेच नहीं जानते,
वे यह नहीं जानते कि धूर्तता कैसे की जाती है,
क्योकि वे जैसे अंदर से हैं वैसे ही बाहर से दिखते हैं,
क्योंकि उन्हें लोगों के अनुसार रंग बदलना नहीं आता।
क्या सिर्फ इसलिए?
माना कि ये उन लोगों से अलग हैं जो खुद को वयस्क कहते हैं,जो शारीरिक रूप से,यांत्रिक रूप से,भौतिक रूप से ज्यादा सक्षम हैं।
क्या ज्यादा सक्षम होना ही श्रेष्ठता की निशानी है ?
वयस्क अपने गिरेबाँ में झांकें |
देखें कि उन्होंने अबोध हँसी हँसना कब से छोड़ दिया है ,
देखें कि तितलियों के पीछे दौड़ने का जो मजा है,सोखना कब से छोड़ दिया है,
देखें कि माँ-पिता से प्यार से गले मिलना कब से भूले बैठे हैं ,
देखें कि कितने मुखौटे , नकाब पहना दिया है उन्होंने अन्दर छुपे एक बच्चे के चेहरे पर ,
देखें कि बड़ी बड़ी खुशियाँ पाने के फिराक में छोटी छोटी खुशियों का उनके लिए अब कोई मोल नहीं है ,
देखें कि आपस में लड़ने झगड़ने पर भी चंद पलों में ही साथ खेलने लग जाना कब से छोड़ दिया है ,
देखें कि बिस्तर पर लेटते ही परियों कि दुनियां में सैर करना कब से छोड़ दिया है |
इन लोगों को ऐसी नादान बातों के लिए समय कहाँ !
इनकी ख़ुशी इस बात में होती है कि यदि आपस में विरोधाभाष हो गया तो अपने अहंकार कि बलि पहले कौन देता है |
यह अहम् कि ,अहंकार कि,शक्ति कि होड़ है |
इन्हें यह नहीं दीखता और ना ही पता है कि पेड़ पौधों कि दुनिया में नर्म किशलय वृक्ष का अलंकार होते हैं | एक कोमल,हँसता,खिलखिलाता फूल सबसे ज्यादा खूबसूरत होता है,यद्यपि उसके पंखुड़ियों में रत्ती भर भी जान नहीं|एक छोटी सी चोट पर भी वे बिखर सकते हैं,पर उन्हें इओसकी चिंता कहाँ |वे तो मस्त हैं हंसने में ,मुस्कुराने में,फिजा को शुगंधित,सुरम्य,आनंदमय बनाने में, भ्रिंगों को लुभाने में ,हम सब को हंसाने में|जाने कब हम सीखेंगे,प्रकृति के इन होनहारों से,जीवन जीना |जाने कब हम पहचानेंगे प्रकृति प्रदत्त घर घर के फूल को और मदद करेंगे हम उनको प्रकृति के सौंदर्य को बरकरार रखने में|
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
फूलों की हँसी
तितली उङी,इस डाल से उस डाल
इस फूल से उस फूल
फूल मुस्कुराए,इठलाए,इतराए
यह जान कर भी कि स्पर्श होगा शूल
कलियाँ फूलीँ,बनीँ फूल
यह जान कर भी कि स्पर्श होगा शूल।
प्रकृति के इन सुकुमारोँ ने
मान लिया जीवन हँसना है
जब तक सिँचित हैं जल से
जब तक सूँघ रहे हैं वायु
अविरल हँसना इनकी फ़ितरत
जीवंत है,जब तक की आयु॥
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
गुरू तेरा संग
सन्नाटे की आवाज़ गूँजती हो जैसे,
चंद लिखी सेर नाचतीँ हो जैसे,
अँधेरे की रौशनी मुझे भीँचती हो जैसै,
दिल मेँ एक दर्द हूँकती हो जैसे॥
एक ही सहारा नजर आता है तब,
हर एक साँस टूटती है जब,
तमोमयी दुनिया लगती है अब,
गुरू जी तुम याद आते हो तब॥
चेहरा खिला,हुआ नव विहान,
साधना की,पढा जब ज्ञान,
वक्त दर वक्त पाकर गुरू तुमको,
भूल गया मैँ सब कुछ जान॥
सोमवार, 29 नवंबर 2010
प्रभो माधव को सप्रेम भेँट
हे रघुवीरावतार!
मेरे प्रभु कृष्णा,
तुम्हारे अभिनंदन को सँवारे गए पंकज सरोज के पाँवङो से पिरोयी हुई प्रेममयी लता,मनोहर प्रतीत हो रही है।
हे सुरेश! वसंत ऋतु की सुधीर पवन साक्षी है तुम्हारे विशाल नयनोँ से बरसते आशीष के निर्मल फुहारोँ की
ओ ब्रह्म जसराज! इस तुच्छ भक्त की भेँट स्वीकार करो प्रभो॥
धरती औ मुसाफ़िर
दीवाना होकर रह गया,
मैँ हिमालय की फिजाओँ का।
वफा कर गए,जफ़ा न हो सकी,
देख कर मचला मन,इन मदमस्त हवाओँ का॥
गंगा पुकारती रही,कलरव की साख देकर,
साहिल तरस गए,मेरे आने की आस लेकर।
बदला न यह मुसाफ़िर,जो चला था प्यास लेकर,
इक बार लङखङाकर,गिरा जो साँस देकर॥
रविवार, 21 नवंबर 2010
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
ME-THE ORPHAN
Wednesday, 13th january ,2016.
My eyes were glimpsing over a panoramic view of the fields outside. The train was at its climax speed. The tea vendor came calling 'chaee...chaee...'. I heard that words but the nerves from my palm ,fingers, ears were got jammed. I was not even able to move my fingers. It was a bitter cold morning. I was unknown of to where i was travelling. The last night was not much dreadful as i experienced it since last 16 years of my 30 years life. Only my eyes were waving to look,i dont know what , whether the attractive green fields or my past memories.
My eyes were glimpsing over a panoramic view of the fields outside. The train was at its climax speed. The tea vendor came calling 'chaee...chaee...'. I heard that words but the nerves from my palm ,fingers, ears were got jammed. I was not even able to move my fingers. It was a bitter cold morning. I was unknown of to where i was travelling. The last night was not much dreadful as i experienced it since last 16 years of my 30 years life. Only my eyes were waving to look,i dont know what , whether the attractive green fields or my past memories.
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