हे रघुवीरावतार!
मेरे प्रभु कृष्णा,
तुम्हारे अभिनंदन को सँवारे गए पंकज सरोज के पाँवङो से पिरोयी हुई प्रेममयी लता,मनोहर प्रतीत हो रही है।
हे सुरेश! वसंत ऋतु की सुधीर पवन साक्षी है तुम्हारे विशाल नयनोँ से बरसते आशीष के निर्मल फुहारोँ की
ओ ब्रह्म जसराज! इस तुच्छ भक्त की भेँट स्वीकार करो प्रभो॥
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