शुक्रवार, 2 मई 2014

डायरी के झरोखे से - 1

आज “2 States” देख रहा था | नॉवेल तो मैंने पहले ही पढ़ ली थी | आलिया ने मासूमियत के साथ (उसके लिए कई बार मूंह बिचकाना क्यों न पडा हो :-D ) अनन्या का किरदार निभाया है | ख़ास कर शुरू में एक रौबदार और बेख़ौफ़ लड़की के रूप में और कहीं-कहीं गुस्से वाला रूप सुन्दर लग रहा था | अर्जुन का कृष के रूप में एक ढपोल आशिक और दोनों परिवार के बीच बना “घंटी” ,बचपना की पुट लिए व्यक्तित्व मर्मस्पर्शी लगा | अतीत से वर्तमान में आती और भारत में विवाह और इससे जुडी परेशानियों ,जिसमें माता-पिता घर-परिवार का क्या-क्या योगदान होता है, को मनोरंजक ढंग से दिखाने में यह मूवी सफल हुई है| यहाँ NIT प्रवास समाप्त होने को है | फिजा में यादों की बारात बह निकली है | 
Facebook हो या फ़ोन , बातें क्लास ,पढ़ाई ,नौकरी-प्लेसमेंट की हो या आम गप्पें हर जगह विरह का माहौल सामने आ ही जाता है | फिर सब मिल पुरानी यादों में तैरने लगते हैं | कुछ दोस्तों की तो कॉलेज से घर को रवानगी भी हो गई है | तो स्वाभाविक है ऐसे में कुछ पुरानी बातों के साथ मेरी ‘डायरी’ का जिक्र हो – एक निजी याद-कोष जिसका पदार्पण मेरी जिंदगी में 15 जनवरी ,2005 को हुआ | मुझे जिज्ञासा हुई कि मैं अभी जिस स्थिति में हूँ, मेरे आसपास जो कुछ घटित हो रहा है, मेरे पसंद-नापसंद आदि का मुझसे सम्बंधित इतिहास कैसा रहा है ? इसी क्रम में मैंने पहली डायरी(वैसे तो जब मैंने खरीदी थी तब वो 5 रु की कूट वाली कॉपी थी, अब भले ही रूतबा बढ़ गया हो) के पन्ने पलटने शुरू किये | उन्हीं यादों की कहानी बाँट रहा हूँ यहाँ : 


Name: सत्यम्      Class: VII      Subject: LIFE

Front Cover of 1st Diary
वैसे तो ‘Life – As a subject’ सीखना-पढ़ना तो काफी पहले से शुरू कर दिया था मैंने पर पन्नों पर उकेरने का ‘श्री गणेशाय नमः’ शनिवार, 15 जनवरी 2005 को किया | उसके पहले के वक्त की यादें जेहन में ही हैं, उन्हें कलम से वास्ता नहीं हुआ | इस ब्लॉग में कहीं-कहीं उन बातों को जोड़ता रहूँगा | उस शनिवार की याद अभी भी चित्त में ताजा है |

शेखपुरा नवोदय में सुबह-सुबह पापा झा सर के क्वार्टर पर पढ़ाने आते थे दोनों को | उस वक्त का बच्चा - मैं (वैसे अभी भी बच्चा ही हूँ :-P :-D ) क्या-क्या सोचता होगा आप सोच सकते हैं.... महज सातवीं क्लास में.... कुछ पढ़ाई के बारे में....कभी खेलने के बारे में....कुछ शिक्षकों का और कुछ माता-पिता का डर....इस उम्र में छोटी पर उस बच्चे के लिए मुश्किल परेशानियां....मैं भी अभी यही सोचता हूँ , पर खुद को उस उम्र में इन अपेक्षाओं से अलग ही पाता हूँ | उसी प्रकार मेरी चिंता पापा द्वारा लिया गया वह science test था...महज 57 मार्क्स ....और गन्दी लिखी इंग्लिश | माता-पिता की आकांक्षाएं असीम और बच्चा पिद्दी(शरीर से मैं बचपन से पिद्दी नहीं था पर माँ कहती है की जब से मैं जटाधारी शिव से कटे हुए बाल वाला बच्चा बना हूँ यानी 5 साल की उम्र में मुंडन हुआ तब से खाना शरीर को लगता ही नहीं ) सा, क्या करे ? और जहाँ दो लोगों ने परीक्षा दी हो तो तुलना करना तो लाजमी है.....‘देखो, कितना साफ़ लिखती है मोना ’.... ‘अरे, कम से कम writing तो साफ़ से लिखो ’..... ‘या फिर subject ही ऐसे पढो कि examiner का ध्यान तुम्हारे इस का-को-कोडबा लिखी writing पर जाए ही न’.... कुछ सीखो उससे... ‘writing भी सुन्दर है और पढ़ती भी है’.... ‘देखने वाला कोई है नहीं हॉस्टल में, सोते रहते होगे ’.... पर आंसू एक बूँद भी नहीं ! अरे मार खा-खा कर(अपने खुराफात की वजह से) ढीठ हो गया था मैं | आत्मग्लानि होती भी तो थोड़ी सी | अब word-meaning याद करने मिलता था और मोना होशियार....मुझसे याद-वाद तब भी नहीं होता था और अब भी नहीं होता....2-4 लाइन गाने के लिए भी lyrics के लिए लैपटॉप खोलना पड़ता....सो ट्यूसन में मैं आये दिन बेवक़ूफ़ बनता रहता था सो थोड़ा सा शर्म होता था मन में | उसी दिन लगा कि डायरी लिखना शुरू करने का उचित समय आ गया है, सो 5 रु की कूट कवर (मान्यता थी की कूट कवर वाली कॉपी काफी दिन टिकती है, और यही सच भी निकला, पूरी भरी हुई वह कॉपी सही सलामत अपने 10 वें जन्मदिन का इंतज़ार कर रही है मेरे पास) वाली कॉपी खरीद लाया और उस दिन का सारा वाकया लिख डाला शुद्ध हिंदी में (वैसे भाषा शुद्ध हिंदी कम साहित्यिक ज्यादा थी) | इस तरह मेरा और मेरी डायरी का साथ चल निकला | यह पहली डायरी मेरे लिए ज्यादा रोचक इसलिए है क्योंकि पहले तो ये ज्यादा पुरानी है और दूसरी क्योंकि मुख्य संस्कारों का जड़ खोजने में, जिसका प्रभाव मुझपर आज तक है (जैसे दर्शन/philosophy), यह मददगार साबित होती है | 
'First and Last Page'       Date 15 / 01 / 2005

To Be Continued ....

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interesting