बुधवार, 7 मई 2014

डायरी के झरोखे से - 2

आज आर्ट ऑफ़ लिविंग के जन्गुओं(जूनियर्स) ने विदाई स्वरुप पुरानी यादों में सराबोर कर दिया | टी-शर्ट, उपहार , विडियो , फोटो आदि के साथ-साथ पिछले चार वर्षों की अथाह यादों का तोहफा दिया | इस कॉलेज में बिठाये प्रत्येक क्षण के यादें स्वप्न लहरियों सी मन में तैर गयीं ....फिर से मेरी प्यारी डायरी तुम याद आ गयी .....स्वयं में यादों का ब्रह्माण्ड संजोये | आज बिठाये अमूल्य क्षणों को एक और समिधा स्वरुप डाल रहा हूँ जीवन रुपी यज्ञ में |
डायरी लिखने की महत्ता (08-09-2006)


       वापस चलते हैं सातवीं कक्षा में यानि 2005 ई. में |उस समय  विज्ञान में आये वह 57 अंक सुकून दिलाते हैं कि उनका कुछ न कुछ तो मेरे निर्माण में योगदान है ही| ऐसे ही कई अनुभवों का मिश्रण हैं मेरे संस्कार, मेरी आदतें , मेरे विचार | उस वाकये के तुरंत बाद वार्षिक परीक्षा आ गयी और मैं 85 % अंक पाकर क्लास में 3rd रैंक लाया | डायरी में से नोट करने वाली बात यह लिखी है कि “माँ-पापा मेरे रिजल्ट से नाखुश थे.....और मैं भी ! ” आज वह परीक्षा मेरे वर्तमान जीवन में रत्ती भर भी मायने नहीं रखती पर लगता है आज भी उनसे मिलती जुलती परिस्थितियों से निपटने का मेरा रवैया कमोबेश वही है |


           इस डायरी में ध्यान देने वाली मुख्य बात यह है कि पूरी डायरी का 70-80 % भाग उस वक्त मन में आये विचारों और भावनाओं पर मेरे उपदेश से भरा पडा है | दर्शन और तर्क शायद मुझमें जब से स्वयं के प्रति चेतना आई है तब से ही मेरे द्वारा अपना कमाल दिखा रही हैं | इन विचारों में धर्म ग्रंथों (गीता, उपनिषद् , रामायण –महाभारत ,वेद आदि ), प्रख्यात विचारकों और आम जीवन के अनुभव से उपजी विचारों की प्रधानता है | उन कई सारी बातों की व्याख्या तो मुझे अब जाकर गुरुदेव से प्रश्नोत्तर में मिलती है | 

जीवन में विभिन्न घटनाओं की सार्थकता
यथा 6-12-2005 को मैंने जीवन में घटित होने वाली प्रमुख घटनाओं यथा नौकरी, विवाह, बच्चे आदि की निरर्थकता की बात की है | उस वक्त उपजी वैराग्य की भावना के बारे में जान मैं आज भी रोमांचित हूँ | कई बार तो मेरी इस प्रवृत्ति ने हास्य रूप ले लिया | 9th क्लास में चंदा(रूपा) की डायरी में नरला से आते वक्त मैंने ऐसा कुछ लिखा था जो मुझे साफ़-साफ़ तो याद नहीं पर जीवन से जुडी कुछ गंभीर बातें थी | उस वक्त ऐसा साहित्य और ऐसी समझ लोगों को भौचक कर देती थी पर मेरे लिए सामान्य थी | 10वीं में आलोक की डायरी में भी ऐसा ही कुछ लिखा था मैंने(एक शब्द “पराकाष्ठा” याद है मुझे) |


         जहाँ तक अध्यात्म और अध्यात्मिक जिज्ञासा की बात है 3-12-2007 को उल्लेख है : Why instead of more civilized society relation between two human beings is worst? Why the word ‘progress’ comes with devastation in real life? और भी ऐसे कई प्रश्नों का उल्लेख है |

13-03-2005 को दो बातों का उल्लेख है –

   1)   मेरा ध्येय
   2) प्रेम और कर्तव्य का जीवन में स्थान

पूरे 20 साल में लक्ष्य निर्धारण में आश्चर्यजनक बदलाव आयें हैं | सर्वप्रथम बचपन में साइंटिस्ट बनने के सनक थी पर छठी क्लास तक आते-आते न जाने यह सपना कहाँ फुर्र हो गया | आगे आने वाले वर्षों में यह उत्तम मामू को देखते हुए एयरफ़ोर्स टेक्निकल ऑफिसर में तबदील हो गया | 9वीं और 10वीं में IIT के बारे में काफी बड़ाईयां सुनने को मिली तो ध्येय ने इंजिनियर बनने की ओर करवट ले लिया | पापा अक्सर मुझे IAS ऑफिसर बनने की सलाह देते थे.....7th-8th में तो मैं EYE VIEW नामक सैम-सामयिकी पत्रिका भी पढता था पर बाद में ये ख्याल गुल हो गया | ट्युसन पर इस बात की चर्चा होती थी तो कहते थे “कोई एक (इशारा मोना की तरफ होता था) डॉक्टर भी तो चाहिए वरना बुढा पड़ने पर मेरा, झा सर का इलाज़ कौन करेगा!? उस समय तो पास में पैसा होगा नहीं तो फ्री तो तुम्ही लोग इलाज़ करोगे न ” | पर डॉक्टर या IAS बनने  का ख्याल हमारे लिए ज्यादा दिन टिका नहीं | सो अब सबसे छोटी बहन को डॉक्टर बनाना चाहते हैं .... हा हा हा.... कितनी आशा और विश्वास से पालते हैं माता-पिता हमें ! 10वीं में कुछ दिन SCRA का ख्वाब जाने कहाँ से जगा था जिसका उल्लेख मैंने आलोक की डायरी में भी किया था उस वक्त पर फिर सब कुछ शून्य हो गया | अब तो ध्येय के नाम पर कर्तव्य और धर्म पालन ही बचा है....आशा है यह लम्बा साथ निभाएगा |

             और प्रेम और कर्तव्य के चर्चे में मैंने कर्तव्य को प्राथमिकता देने की बात लिखी है | शायद उस समय तक प्रेम का अर्थ मेरे लिए रिश्तों से जुड़े प्रेम तक ही सीमित था |

इस ब्लॉग में कुछ गंभीर विषयों पर चर्चा करते-करते थोडा बोरिंग बना दिया मैंने पर अगले अंक में मैं हाज़िर हूँगा अपने खुराफाती कारनामों के इतिहास के साथ और नवोदय के दोस्तों से से जुडी कुछ मसालेदार यादों के साथ |

To Be Continued....

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interesting