गुरुवार, 2 मई 2013

बदलाव


कल भी बदला,आज भी,कल भी बदलेगा
यह घर बदला,वह आँगन बदला
यहाँ रिश्ते बदले,कभी जुड़े कभी टूटे
यह रात बदली,वह दिन बदला
यहाँ चाँद बदला,कभी घटा कभी बढ़ा
यह समय बदला,वह दौर बदला
आशियाना बदला,कहीं छत कहीं जमीं
यह वस्त्र बदला,वह व्यवहार बदला
यह शिष्टाचार बदला,कहीं नैतिक कहीं अनैतिक
यह सरमाया बदला,वह विश्वास बदला
यह सेहत बदली,कभी सुख कभी कष्ट
पिता का साया गया,माँ का आँचल गया
भाई क प्रेम बदला,कभी हर्ष कभी शोक
यह शरीर बदला,वह मन बदला
यह अभिमान बदला,कभी उत्कृष्ट कभी निकृष्ट
किन्तु “ मैं ” जो साक्षी है,था,रहेगा
इन बदलाव का,यह तो यही है
यह यही था,यह यही रहेगा
अनवरत होते बदलाव से निरपेक्ष
पाया है मैंने मुझको,ढकी चादर उतार ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

interesting