शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

उन्मुक्त यादें

नील गगन में,झूम पवन में
उड़ता हूँ मैं वन उपवन में
मन करता है उड़ जाऊं मैं
पर खोल उन्मुक्त बचपन में

बेहद रसीले ,पीले पीले
आमों के उन ऋतु सावन में
कर आऊं मैं सैर बाग़ कि
इस मंजर मैं ,उन मंजर में


छा जाऊं बन राग - रागिनी
चंचल मृग के चित नयनन में
कर आऊं मैं सैर बाग की
इस मंजर मैं ,उन मंजर में

गंगा कि मटमैली रेती
धारा जिसकी नाव थी खेती
डूब के सागर में भाव की
कर आऊं मैं सैर नाव की

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