गुरुवार, 6 जनवरी 2011

उफ़ ! ये ठण्ड

धुंध की चादर ओढ़े है धरती
तम को चीरने की कशमकश में
सड़क के किनारे टिमटिमाते स्ट्रीट लाइट
रूह जमाने वाली बर्फीली हवा
कमरे में शेंध मारती वो धुंध
शीशों के उस पार खड़ी है |

शायद उसको भी हो कुछ ठण्ड का एहसास
क्योकि उसे भी मेरे ही साथ आने की पड़ी है
धुंध को क्या पता कम्बल की नरमाई क्या चीज़ है
ये तो आशिक जानते हैं तरुनाई क्या चीज़ है
नींद क्या जाने सुबह की अंगड़ाई का आनंद
गुनगुनी धुप जानती है अरुणाई क्या चीज़ है |

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