सोमवार, 30 जुलाई 2012

प्रिय चाँद

यह पत्र एक ऐसे युवक की परिकल्पना है जिसने अपना बचपन और किशोरावस्था चाँद को निहारता बिताया है. वक्त के साथ रिश्तों में किस प्रकार के बदलाव आए हैं वह एक रात इस पत्र के माध्यम से चाँद को बता रहा है  .......
प्रि चाँद ,
                       तुम्हारी भूमिका कब मामा से एक ऐसे चेहरे की हो गयी जिसे देख मुस्कुराना एक आदत सी हो गयी पता चला . कभी माँ दादी की आँखों से तुम्हें देखता था तो तब भी तुम सुंदर दिखते थे पर वह सुंदरता मेरे नींद की आगोश में जाने से पहले आने वाली अंगड़ाईयों के बाद धूमिल होती जाती थी .पर मुझे याद नहीं कब से वह यादें मीठे स्वप्न की भाँति नींद में भी तैरने लगी हैं . तुम्हारी सोलहों कलाएँ मुझे उसके चेहरे की विभिन्न भंगिमाओं सी प्रतीत होती है . तुम्हारा प्रथम दिवस का रूप देख ऐसा लगता है मानो वह मेरे किसी बुद्धू वाली हरकत पर अपनी उत्तेजना को छुपाने के लिए पूरे सोलहों आने की मुस्कान बिखेर रही हो और धीमी धीमी वह मुस्कान तुम्हारे पूर्ण होने तक एक मासूम सूरत की जोरदार ठहाकों में तब्दील हो जाती हैं .चाँद ,पता है तुम्हें जब तुम पूरे कृष्ण पक्ष में मुझसे मिलने नहीं आते हो तो मुझे बड़ा बुरा सा लगता है . क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आती?क्या तुम्हें मेरे मुस्कान और उसके चेहरे को निहारने की चाहत से कोई शिकायत है?आह! व्याकुल हो उठता हूँ ,भान हैं तुम्हें? पर फिर खुद को समझाता हूँ की तुम्हारे ऊपर जाने कितने बच्चों और स्वप्नद्रष्टाओं के मुस्कान और हंसी की जिम्मेदारी है . तुम सबकी सेवा करना चाहते हो  बिल्कुल उसकी तरह ,अतः मुझे तुझसे कोई शिकायत नहीं .
                                       आज तुम्हें यह चिट्ठी मैं इसलिये भेज रहा हूँ क्योकि तुम्हें इत्तिला कर देना चाहता हूँ कि मेरे और तुम्हारे मध्य आज एक दीवार खड़ी हो गई है जिसके पार देख पाना काफी मुश्किल है . वैसे तो इसके पनपने का आभाष मुझे सदियों से था पर तब तक इसके होते हुए भी मैं तुम्हारी हसीन झलक का आनंद उठा सकता था पर अब यह बिल्कुल अपारदर्शी हो गयी है .स्वप्न और नींद से तेरा मुस्कुराता चेहरा गायब सा हो गया है . नींद को गले लगाने से पहले जब मैं तुम्हारी कम से कम एक झलक को आतुर होता हूँ  'छत' बीच में बाधा बन खड़ी हो जाती है .बचपन की छत इस कदर थी कि मेरे तुम्हारे बीच कोई बाधक था . खुद छत भी मदद करती थी मुझे आरामदायक नींद और स्वप्न प्रदान करने में . पर आजकल अन्य लोगों कि तरह मुझे भी छत के नीचे ही सोना पड़ रहा है कई समस्याओं कि वजह से . अब तो तुम्हारी यादें छत में उलझकर भ्रमित हो जाती हैं .पर इंतजार करूँगा उस दिन का जब मैं फिर से तुम्हारे चेहरे को जी भर कर देख पाऊँ , महसूस कर पाऊँ .
                                                                             तब तक के लिए                                              'शुभ रात्रि '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

interesting