प्रथम बेर देखा , कल कारखानों की गर्जना शांत है
पेड़ अंगडाई ले रहे हैं
मुर्गा भोर होने की टाह दे रहा है
पशु पक्षी उत्सव मना रहे हैं
एक नए सुबह के उपलक्ष्य में
धूसरित आकाश में चाँद तारे टिमटिमा रहे हैं
हुआ अंजोर
पक्षियों ,कीट पतंगों ,जानवरों ने
आज की यात्रा शुरू कर दी है,नए उल्लास के साथ
शायद बीते अतीत को भूलकर
सूरज की नवोदित मुस्कान
प्रकृति के ख़ुशी में बाढ़ लाये जा रही है
प्रकृति के ख़ुशी में बाढ़ लाये जा रही है
पर एक अजीब पशु देखा
जो अब तक इस कायनात से अज्ञ है
जिसे नए विहान की तनिक भी परवाह नहीं
पर ख़ुशी है इस बात की कि अब जाकर
उसे सुकून की नींद नसीब हुई है
प्रकृति व इसके अर्ह उपहारों से
भले ही उसका सामंजस्य न हो
अपने रोजमर्रा के काम से
बॉस की डांट से
बीबी की बात से
उपाधी कारखानों से
पेशे की अस्थिरता से
शाम को कर्योपरांत दैहिक थकान से
चंद पलों के लिए सुकून तो है
प्रकृति के अलंकारों को झाँकने का समय कहाँ
न ही वक्त है खुद के अन्दर झाँकने का
जीवन पद्धति के बारे में सोंचने का
दौड़ भाग तो पंछी ,कीट-पतंग और सूरज भी रहे हैं
पर कल-कारखानों और आदमी की तरह नहीं
जिनमें कोई भाव नहीं
जीवन के लिए
न ही जिज्ञासा
और न ही प्रकृति के लिए कोई सम्मान
दूर अब आवाज सुनाई दे रही है
मंदिर में बजते घंटों की
थाप उठ रही है नाल और तबलों पर
सुनकर सुकून हुआ की चंद प्रहरी तो सजग हैं
प्रकृति का
झूमते पेड़ों का
प्राणमयी बहती हवाओं का
उल्लास में उड़ते पंछियों का
और जीवन में रस भरते
मुस्कुराते सूरज का
और सबके निर्माता परमात्मा के स्तित्व का ||
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