मंगलवार, 30 नवंबर 2010

गुरू तेरा संग


सन्नाटे की आवाज़ गूँजती हो जैसे,
चंद लिखी सेर नाचतीँ हो जैसे,
अँधेरे की रौशनी मुझे भीँचती हो जैसै,
दिल मेँ एक दर्द हूँकती हो जैसे॥

एक ही सहारा नजर आता है तब,
हर एक साँस टूटती है जब,
तमोमयी दुनिया लगती है अब,
गुरू जी तुम याद आते हो तब॥

चेहरा खिला,हुआ नव विहान,
साधना की,पढा जब ज्ञान,
वक्त दर वक्त पाकर गुरू तुमको,
भूल गया मैँ सब कुछ जान॥

सोमवार, 29 नवंबर 2010

प्रभो माधव को सप्रेम भेँट


हे रघुवीरावतार!
मेरे प्रभु कृष्णा,
तुम्हारे अभिनंदन को सँवारे गए पंकज सरोज के पाँवङो से पिरोयी हुई प्रेममयी लता,मनोहर प्रतीत हो रही है।
हे सुरेश! वसंत ऋतु की सुधीर पवन साक्षी है तुम्हारे विशाल नयनोँ से बरसते आशीष के निर्मल फुहारोँ की
ओ ब्रह्म जसराज! इस तुच्छ भक्त की भेँट स्वीकार करो प्रभो॥

धरती औ मुसाफ़िर


दीवाना होकर रह गया,
मैँ हिमालय की फिजाओँ का।
वफा कर गए,जफ़ा न हो सकी,
देख कर मचला मन,इन मदमस्त हवाओँ का॥

गंगा पुकारती रही,कलरव की साख देकर,
साहिल तरस गए,मेरे आने की आस लेकर।
बदला न यह मुसाफ़िर,जो चला था प्यास लेकर,
इक बार लङखङाकर,गिरा जो साँस देकर॥