शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चुप चुप क्यों

आज सुबह जब जगा और नेट खोला तो कुछ शब्द दिमाग में कुलबुला रहे थे...मैं जानना चाह रहा था की ये क्या कहना चाहते हैं,इसलिए मैंने कलम पकड़ी और पन्ने पर हाथ अनायास ही चल पड़ा.दिमाग में पिछली रात के पूर्ण चन्द्र की छवि थी......
जो पंक्तियाँ कागज़ पे उगी वो इस प्रकार हैं..
"ईश्वर अपनी कृति दुहराता नहीं,
उसे पसंद है नित नए निर्माण
पर न जाने क्यों शशि आभा से प्रेरित
निर्माण किया उसने तेरा,भावनाएं भरी तुझमें
हरेक विधा दी तुझको,घटते बढ़ते चन्द्र पटल सदृश

आज आसमान खुशियाँ मना रहा है
एक एक तारा ख़ुशी से गा रहा है
कारण कि दो पख में बस एक ही बार
तेरा पूर्ण व सर्वोत्कृष्ट रूप दृग में बसा जा रहा है

था इस पल,इस दिन का इंतज़ार कई दिनों से
इंतज़ार में हूँ तेरे लौट आने का उतने ही दिनों से
विश्वास है फीकी न होगी मुख कांति
दर्शन होंगे पुनः ,पुनः न होगी कभी ऐसी अक्षुण शांति ||

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interesting