शहर के साथ चेहरा और चेहरे के साथ लोग बदल जाते हैं
पर अपनों की तो छोड़ ,गैर भी खूब याद आते हैं
जीने को मुकम्मल होता है जो जहाँ
पर वहां सिर्फ पराये नजर आते हैं
मारी गई मति होती है,जब ऐसी गति होती है
सर टिकाने को कंधे ,आँखों में भरने को आँखें तरस जाती हैं
महसूसता तो हूँ खूब,पर बाहों में कहाँ वे आते हैं
भूल कर भी जिन्हें हम भुला न पाते हैं,वे ही में बहुत सताते हैं|
पर अपनों की तो छोड़ ,गैर भी खूब याद आते हैं
जीने को मुकम्मल होता है जो जहाँ
पर वहां सिर्फ पराये नजर आते हैं
मारी गई मति होती है,जब ऐसी गति होती है
सर टिकाने को कंधे ,आँखों में भरने को आँखें तरस जाती हैं
महसूसता तो हूँ खूब,पर बाहों में कहाँ वे आते हैं
भूल कर भी जिन्हें हम भुला न पाते हैं,वे ही में बहुत सताते हैं|
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