उष्णता से तृप्तोपरांत त्रस्तउत्सर्जित नमकीन बूँदोँ से पस्तआस मेँ चंद सुकुन कीविश्वास मेँ बादलोँ से टपकते रस बूँद की
हलक सूखते थे,पक्षियों के प्राण टूटते थेछाँह में भी बेचैन थे हमफिर भी आमों में बौर फूटते थे
काले बादलों को देख हर्षोल्लासित हुआ मनबरसते बूँदोँ को आँखोँ के पलकोँ पे,अधरोँ पे,चेहरे पे,महसूसता था सूखा हलक औरबरसों बारिश में नहाने को अतृप्त मन
बङी - बङी बूँदेँ, चेहरे पे बिछ जातीजैसे होँ मृत्यु-शय्या पे पङे,हेतू एक पल और जीने को प्राणजो पल मेँ ही दे गया,जीवन जीने को एक और विश्राम॥